कबीर दास – जीवन परिचय
कबीर दास जी का जन्म और जन्म स्थान को लेकर आज तक विद्वानों में मतभेद देखने को मिलता है कुछ विद्वान इनका जन्म काशी में सन 1398 तथा कुछ सन 1440 मैं हुआ था मानते हैं
कहां जाता है कि कबीरदास का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ लेकिन विधवा होने के कारण लोक लाज के डर से इनकी मां ने इन्हें लहरतारा नाम के तालाब के किनारे छोड़ दिया था!
कबीर दास जी का एक मुस्लिम दंपत्ति परिवार ने पालन पोषण किया नीरु और उनकी पत्नी नीमा ने!
माना जाता है कि कबीरदास पढ़े लिखे नहीं थे वह जो कहते थे उनके शिष्य उसे लिख देते थे
कबीर दास जी एक ही ईश्वर को मानते थे
कबीर दास जी की पत्नी का नाम लोई था
कहां जाता है कि कबीरदास का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ लेकिन विधवा होने के कारण लोक लाज के डर से इनकी मां ने इन्हें लहरतारा नाम के तालाब के किनारे छोड़ दिया था!
कबीर दास जी का एक मुस्लिम दंपत्ति परिवार ने पालन पोषण किया नीरु और उनकी पत्नी नीमा ने!
माना जाता है कि कबीरदास पढ़े लिखे नहीं थे वह जो कहते थे उनके शिष्य उसे लिख देते थे
कबीर दास जी एक ही ईश्वर को मानते थे
कबीर दास जी की पत्नी का नाम लोई था
उनके पुत्र का नाम कमाल उनकी पुत्री का नाम कमाली था
कबीर दास जी की मृत्यु 1518 में हुई
भाषा –
कबीर दास जी की मृत्यु 1518 में हुई
भाषा –
पंचमेल, खिचडी है क्योंकि उनकी भाषा में हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द सम्मिलित है
कृतियां –
कृतियां –
साखी, सबद, रमैनी!
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।
भावार्थ:
- कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है।
- मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ भावार्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है।
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।
भावार्थ:
- अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।
भावार्थ:
- कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
भावार्थ:
- जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी।