तुलसीदास के दोहे Tulsidas dohe

तुलसीदास जीवन परिचय

  • हिंदी साहित्य के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन 1532 में बांदा जिले के राजपुर ग्राम में हुआ था इनकी जन्म तिथि तथा जन्म स्थान को लेकर काफी मतभेद है कुछ विद्वान इनका जन्म तिथि 1511 कुछ 1554 में तथा कुछ इनका जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के सोरों क्षेत्र तथा कुछ गोंडा जिले के सूकर खेत में बताते हैं इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था जन्म के बाद सबसे पहले नन्हे राम नाम का उच्चारण किया जिससे इनका नाम राम बोला पड़ गया जन्म के बाद  इनकी मां का निधन हो गया हां इनके पिता ना किसी और अनिष्ट से बचने के लिए इन्हें एक दासी को सौंप दिया और समय विरक्त हो गए उनके गुरु का नाम नरहरिदास था जिन जिन से इन्होंने शास्त्र का अध्ययन किया हिंदी साहित्य के महान कवि तुलसीदास जी का निधन 1623 ईस्वी में हो गया

तुलसीदास के दोहे

राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |

तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||

अर्थ: तुलसीदासजी का ये  कहना  हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो

  • तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |

    सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||

    अर्थ: गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है

  • तुलसी मीठे बचन  ते सुख उपजत चहुँ ओर |

    बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||

    अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी    वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |

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